विश्वविद्यालय एवं कार्यक्रम

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हजरतज़ मोहसिने मिल्लत के ख्वाबों की हसीन ताबीर

अर्बी युनिवर्सिटी

अज़-जानशीने मोहसिने मिल्लत मौलाना मोहम्मद अली फ़ारूक़ी

    मोहतमिम मदरसा इस्लाहुल मुस्लेमीन और फाउंडर एंड चेयरमेन मोहसिने मिल्लत अर्बी युनिवर्सिटी रायपुर(छ.ग.)

दुनिया ने कभी कभी वो मंज़र भी देखा कि वक्त के एक करवट ने तारिख का धारा बदल दिया और पस्ती में पडी क़ौम को लम्हों में रिफ्अतों के आसमानों में पहूंचा दिया। कुछ यही तारीख सरज़मीने छत्तीसगढ की भी है। जहां आज से तक़रीबन 90 साल पहले एक मर्दे मुजाहिद मोहसिने मिल्लत की शक्ल में आता है और फिर लगातार अपनी शब वो रोज़ की कोशीशों से एक तारीख बनाता है। लबों पर इल्मी मुस्कुराहट, चेहरों पर फारूक़ी जलाल और आँखों में रौशन वो ताबनाक मुस्तक़्बिल चमक और क़ल्ब वो ज़िगर में क़ौमी सरफर और मिल्ली ऊरूज़ का जज़बा लिये रायपुर की धरती पर क़दम रखता और देखते ही देखते एक नई तारीख जन्म लेने लगती है। जहालत की तारीक़ी और ईल्म ती दूरी के भयानक अंधेरे में सज्दा-ए-शब्बीरी की रौशनी और ज़रबे यदुल्लाही का ज़लाल लिये जंगल की तारीक़ और अंधेरे गुफओं तक इल्म की रौशनी और इश्क रसूल की इत्र बेज़ निक्हतों से मोअत्तर वो मुनव्वर करने का अज़्म वो इरादा लेकर बढता है और फिर उस की शब वो रोज़ की मेहनत, लगातार जिद्दो जोहद और दिन रात की सई-ए-मुसलसल से हर तरफ इश्क़े रसूल की बादे बहारी रक़्स करने लगती है, इल्म का उजाला फैलने लगता है, अज़मते औलिया की रौशनी बिखरने लगती है और देखते ही देखते गुल्शने फिक्र वो फन मुस्कूराने लगता है। हज़रत मोहसिने मिल्लत अलैहिर्रहमा अपने मक़सद पर नज़र लगाए, फूलों की तरह, मुस्कूराते, कांटों से से उलझते और मुश्किलात से खेलते मंज़िले मक़सूद की तरफ बढते रहे। यहां तक की एक दिन ज़िंदगी का पैमाना लबरेज़ हो गया, मौत के पैग़ाम ने आप को दाएमी ज़िंदगी से जोड दिया मगर जो इल्म वो इर्फान का चिराग जला था वो मुसलसल हवाओं की ज़द पर जलता रहा। मदरसा इस्लाहुल मुस्लेमीन व दारुल यतीमा(मुस्लिम यतीम खाना)की शक्ल वो सूरत में दीन वो सुन्नियत का एक मज़बूत क़िला बन के आप के मिशन को घरों घर पहूंचाता रहा। मसाईब वो आलाम की अंधियां उठती और उस से टकरा कर गुज़र जाती, मुसीबतों के तूफान ऊमंडते और घबराकर रास्ता बदल देते, परीशानियों की बिज्लिया कडक्ती और फिर रुख फेर लेतीं। आप की क़ायम कर्दा रूहानी यादगार मदरसा इस्लाहुल मुस्लेमीन उन आफात वो मसाईब के मंज़िल-ब-मंज़िल यलगारों में भी क़ुर्आनी फ्यूज़ वो बर्कात से पूरे इलाक़े को मोअत्तर वो मुनव्वर करता आगे ही आगे बढता रह। यहां तक कि मज़हबी उलूम के साथ ज़माने के उलूम, साईंस वो टेकनालाजी और मैथमेटिक्स वगैरा को दामन में समोए क़ौम की रहनूमाई का फरीज़ा अंज़ाम दे रहा है। आप के लाइक़ सद इफ्तिखार शहज़ादे और आप के पहले जाँनशीन फखरूल औलिया हज़रत मौलाना फारूक़ अली फारूक़ी अलैहिर्हमा ने आप के मिशन को नया रूप देने के लिये एंगलो उर्दू हाई स्कूल की बुनियाद डाल कर मिल्लत की तरक़्की वो खुशहाली के लिये एक ठोस मंसूबा तैय्यार किया। जिस में मुख्तिफ इलाक़ों में मस्जिद वो मदरसा के क़्याम के साथ स्कूलों और कालेजों के ज़रिये क़ौमे मुस्लिम के नौ निहालों में दिनी ऊमंग और दुनियावी तरक़्क़ी का अज़ीमुश्शान प्रोग्राम शामिल था। आप जहां बे मिसाल फक़ीह और अज़ीम मुफ्ती थे वहीं मुर्दा दिलों में हरारत वो गर्मी पैदा करने वाले मुक़र्रीर वो खतीब भी थे। साथ ही साथ नब्बाज़े क़ौम और बेहतरीन हकीम होने के अलावा क़ौम वो मिल्लत की सर बुलंदी वो बुलंद इक़्बाली के लिये हमा बेचैन वो बे क़रारी आप की तबीयत में कूट-कूट कर भरी थी। आप की दूर अंदेश निगाहें देख रही थी कि मुस्तिकबिल में कालेज और युनिवर्सिटी के ज़रिये दहरियत का तूफान ऊठेगा, ला-दीनीयत की आंधियां चलेगीं और क़र्आन की अज़मतों से खेलवाड करने के लिये हर वक़्त नये नये साज़्शी जाल बूने जाएगें। लेहाज़ा उन उठते हुये तूफानों से मुक़ाब्ला करने के लिये अपना खुद का स्कूल हो, खुद का कालेज हो और उर्दू, अर्बी के साथ अपनी तहज़ीब वो तमद्दुन के तहफ्फुज़ वो बक़ा के लिये खुद की युनिवर्सिटी हो जहां से दुनियावी तालीम के साथ दीनी फिक्र और मज़हबी किर्दार वो अमल के तहफ्फुज़ का भी बेहतरीन इंतेज़ाम हो । जिस से वहां तालीम पाने वाला बच्चा दुनियावी तालीम के साथ रूहानी तवानाई और अख्लाक़ी बुलंदी का पैकर बनकर क़ौम वो मिल्लत का बेहतरीन ज़ामिन बन सके। अभी आप का प्लान धरती पर जगह बना ही रहा था कि, मौत के फरिश्ते ने दहलीज पर आवाज़ दी। हज़रत मोहसिने मिल्लत के सवा साल बाद ही आप भी हमेशा के लिये हम से रुख्सत फरमा गये। आप की मौत से एक अज़ीम मंसूबा, एक बे मिस्ल प्लान, एक क़ौम वो मिल्लत की सरफराज़ी का तारीख साज़ मिशन दम तोडने लगा। मगर ऱहमते खुदा बंदी ने चारा साज़ी की,गौस वो ख्वाजा की अल्ताफ वो इनायत ने रहनूमाई की और फिर चंद ही साल बाद हज़रत मोहसिने मिल्लत का मिशन फिर एक नई तवानाई के साथ और एक नई ताक़त वो क़ुव्वत के साथ उभरा और फिर दुनिया ने देखा कि, मदरसा की चहार दिवारी क़ालल्लाह वो क़ालर्रसूल की सौते सर्मदी से फिर गुंजने लगी। हिफ्ज़ वो क़िरत के साथ दर्से निज़ामी की शक्ल में जहां मदरसा एक नए दौर में दाखिल होने लगा वहीं तिब्बिया कालेज की शक्ल में फैज़ाने मोहसिने मिल्लत अपना जल्वा बिखेरने लगा। धीरे, धीरे ग़रीब नवाज़ एजूकेशन के तेहत तिब्बिया कॉलेज और हामिद अली एजूकेशन के साया तले हिन्दी, अंग्रेजी मेडियम के स्कूलों के ज़रिये दुनियावी तालीम के साये में ज़ेहन वो फिक्र का एक नया इंक़ेलाब अंग्राई लेने लगा। इस तरह हज़रत मोहसिने मिल्लत का वोह अज़म वो इरादा कि,, पहाडो की गुफाओं तक जहां आज भी सूरज की रौशनी का पहुंचना मुश्किल है वहां भी इल्म की रौशनी फैलाउंगा,,  ख्वाब पैकरे महसूम में अपना जल्वा बखेरने लगा। यहां तक कि 7 मार्च 2010ई. को वोह तारीख साज़ लम्हा भी आया जिस में मुक़द्दर को जगमगा ने वाली वोह साअते हेमायूं मुस्कूराने लगी जो अपने दामन में फिक्र वो फन की इत्र बेज़िया, इल्म वो अदब की तवानीईयां, तालीम वो तर्बीयत की बुलंदियां और ज़ेहन वो फिक्र में एक नया इंक़ेलाब, एक नई तारीख और एक नई ज़िन्दगी लिये खडी थी। जिस में छत्तीसगढ की धरती पर पहली बार मोहसिने मिल्लत, अर्बी, उर्दू इस्लामिक युनिवर्सिटी की बुनियाद अलजामिअतुल इस्लाह के नाम से इस तरह डाली गई कि, फिक्र वो फन की दुनिया मुस्कूरा उठी, इल्मी दुनिया में एक नए इन्क़ेलाब की धमक महसूस की जाने लगी और इल्म वो अमल के आफाक़ों पर उम्मीदों का सवेरा मुस्कूराने लगा, यक़ीन वो इत्मेनान का उजाला बिखेरने लगा,

खुशियों और मुसर्रतों की चांदनी हर तरफ फैलने लगी।

       आज वो युनिवर्सिटी सिर्फ मुजौव्वेदा है मगर अहले दानिश और अर्बाबे फिक्र वो फन की नज़रे देख रही हैं कि, जो अब्र यहां से उठेगा वोह हर दस्त वो जबल पर बर्सेगा, जो चिराग यहां से जलेगा वो इलाक़ा वो खित्ता को रौशन करेगा और जो फिक्र यहां पलेगी उस्की रिफ्अते हिमालियां की बुलंदियों को भी शर्माएगी।

    इंतेहाई बे-सरो सामानी के आलम में खुदा की ज़ात पर भरोसा कर के बुनियाद डाल कर कारवाने इल्म को आगे बढा दिया गया है। अब सरकारे बगदाद और सुलतानुल हिन्द के फैज़ान के सहारे यक़ीने कामिल और उम्मीदे वासिक़ है कि जब ये मिशन अपनी मंजिले मक़सूद तक पहूंचेगा उस वक़्त एक नई तारीख के साथ पुरी मिल्लत की सरफराज़ी का रौशन मुस्तक़्बिल हमारा इस्तिक़बाल करेगा।

     आज बातिल प्रस्त हर तरफ से मिल्लते इस्लामियां को लल्कार रहे हैं। कभी यू.टियूब डाट काम और फेस बुक डाट काम के ज़रिये रसूले पाक की तौहीन आमेज़ कार्टूनों के ज़रिये मिल्लते इस्लामिया के इमानी जज़्बात को लल्कारते हैं तो कभी फितना नामी फिल्म के जरिये हमारे ईमान पर डाका डालने की कोशिश करते हैं अभी दो साल पहले डन्मार्क में ऐसे ही कार्टूनों का नापाक सिलसिला चला था जिस पर मैंने इसी दावते फिक्र के ज़रिये क़ौम को होशियार किया था। आज फिर गैरते ईमानी को लल्कार ने की साज़िश की जारही है। अमेरीकन मुस्लिम नौजवानों की एक तंज़ी ए.आई. आर. ने बताया कि अमेरीकन कार्टूनों ने अम्बियाऐ किराम अलैहिमुस्स्लातो वत्तस्लीम के अज़मतों से खेलवाड करने के लिये एक कमेटी बनाई है। जिस के ज़रिये वोह टी.वी. और कार्टून से उनका मज़ाक़ उडाना अपना हक़ समझते हैं और जब मुसलमान उस पर एहतेजाज करते हैं तो फौरन आज़ादी-ए-राय का राग अलापने लगते हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या यही आज़ादी-ए-राय है कि किसी के भी जज़्बात और उनके अक़ाइद का मज़ाक़ उडाया जाये ? अगर वाक़ई इज़हार की आज़ादी का मग्रबी तसव्वुर यही है तो ये रवय्या यहूदीयों के हवाले से दिखाई क्यूं नहीं देता ? जरमन में हिटलर के होलो कास्ट को लेकर तारीखी दलीलों और मजबूत शहादतों के साथ बात करने पर भी सख्त सज़ायें सुनाई जाती हैं। उन दलीलों और शहादतों पर पाबंदिया लगाई जाती हैं। यहां तक कि कई लोगों को सज़ाये मौत की मंजिलों से भी गुज़रना पडा। इसी साल 5 फरवरी को यहूदीयों के खिलाफ बैनर लगाने में न्यूयार्क में लोगों को मक़ैद की सज़ा सुनाई गई। मुम्बई में अपने होटल का नाम हिटलर रखने पर उस के मालिक को मुजरिम करार दिया गया। रूसी शहर पेटर बर्ग के अखबार,, आर्थोडिक्स रश्या,, के चीफ एडीटर,, कानिटन शबोमर,, को सिर्फ एक तहरीर पर तीन साल की सज़ा सुन्नी पडी। इसी तरह बर्तानिया, फ्रांस, जर्मन, इटली, चैकरे पब्लिक, स्पैन, पौलैण्ड, यूनान, कनाडा, अमेरीका और नारवे वगैरा में 5 फरवरी से 15 मई तक होने वाले मुख्तलिफ वाक़आत में यहूदी मुखालिफ नारा नगाने, कार्टून बनाने, इस्टीकर चिपकाने, तक़रीर करने और इण्टर नेट पर यहूदी मुखालिफ ग्रुप बनाने, यहां तक कि किताब बेचने वालों के खिलाफ 18/18 साल तक क़ैद की सज़ाये दी गईं, उन का बिजनेस खत्म किया गया, उन पर लाखों डालर का जुर्माना लगाया गया। तलबा तक को युनिवर्सिटी से निकाल कर तालीम से महरूम किया गया। क्या लोगों को उस वक़्त राय की आज़ादी और ख्यालात के इज़हार की आज़ादी का ख्याल नही आया। इसी तरह टाईम मैग्ज़िन जिसे दुनिया का सब से बडा रिसाला बताया जाता है जो दुनिया भर में छपता है और आलिमी रियासत का रुख भी मुतअय्यन करता है। इण्डिया में भी उस के एक स्टाप ने इस्लाम और औरतों के हुक़ूक़ पर सर्वे कर के इस्लाम के अस्ल फिक्र और औरतों के इस्लामी हुक़ूक़ को छुपा कर वही छापा जिस से इस्लाम दुश्मन ताक़तों को तक़वीयत पहुंती है और उन्हें तस्कीन मिलती है।

     इन हालात में ऐसे उल्मा की तय्यारी वक़्त का अज़ीम तक़ाज़ा है जो दीनी उलूम वो फूनून में यक्ता-ए-रोज़गार होने के साथ साथ दुनियावी मोआमलात में खुसूसन बातिल प्रस्तों की साज़िशों पर गहरी नज़र रख सकें। वोह ना सिर्फ मस्जिद वो मदरसा तक महदूद रह सकें बल्कि इण्टर नेट, सैटेलाईट पर भी मुकम्मल नज़र रख सकें और उन के सही इस्तेमाल के ज़रिये क़ौम वो मिल्लत के तहफ्फुज़ का फरीज़ा भी अन्ज़ाम दे सकें।

     हज़रत मोहसिने मिल्लत ने फरमाया था कि,,मैं अपने बच्चों का मुक़द्दर तालीमी दुनियां में आस्मान के सीतारों से भी बुलन्द देखना चाहता हूं,, आज उन्हीं के ख्वाबों को सरमिन्दये ताबीर करने केलिये और आलमी सतेह पर उलमा वो फुक़्हा की मज़बूत टीम तय्यार करने केलिये एक युनिर्सिटी की ज़रुरत थी जिस के साया तले एक कैम्पस में और एक ही चहार दीवीरी में हिफ्ज़ वो क़िरत और फिक़्ह वो हदीस के साथ उस पर रिसर्च करने वाला साईंस, टेक्नालॉदजी, केमेसट्री और बायोलॉजी के माहेरीन से भी राब्ता क़ायम कर के दीन वो दुनिया के जुम्ला उलूम वो फुनून से ताअल्लुक़ बना सके। साथ ही साथ तसनीफ वो तालीफ और सहाफत के ऐसे ब-कमाल शख्सियतों का वहां से ज़हूर भी हो सके जिन के फिक्र वो फन और तक़्वा वो तहारत पर एक आलम रश्क करे। हमने अल्लाह वो रसूल की ज़ात पर भरोसा कर के गौस वो ख्वाजा के अल्ताफ वो इनायात का सहारा लेकर क़दम आगे बढ़ाया है। हमें उम्मीद है कि, ये इल्म का कारवाँ आगे बढेगा और फिक्री दुनियां में फिर एक नया इन्क़लाब आयेगा।

एहसासे अमल की चिंगारी जिस दिल में फिरोज़ाँ होती है।

उस लब का तबस्सुम हीरा है उस आँख का आँसू मोती है।।

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मदरसा इस्लाहुल मुस्लेमीन जो एक अर्बिक युनिवर्सिटी है आपके शहर रायपुर को व बेरुनी शहर को दिलो जान से इस्लामीक खिदमात अंजाम दे रहा है । आप हज़रात से गुज़ारिश है कि हमारे मदरसे को ज़्यादा से ज्यादा ताउन फरमाकर सवाबे दारैन हासिल करें मदरसा में तालीमी साल शुरू हो चूका है तालीमी मियर बुलंद करने के लिए पुराने मुद्रिसिंन के अलावा नये मुद्र्रिसिंन का भी इजा फा किया गया है राब्ता करने का तरिका :

बैंक का नाम : भारतीय स्टेट बैंक
खाते का नाम : Mohammad Ali Farooqui
खाता संख्या : 30913259716
मोबाइल नंबर : 9425231208 / 7869228125